तीर्थाटन को जानेवाले कुछ ग्रामीण भाईयों ने संत तुकाराम से भी साथ चलने की प्रार्थना की | तुकारामजी ने अपनी असमर्थता प्रकट की | उन्होंने तीर्थयात्रियों को एक कड़वा घिया देते हुए कहा, “कृपया इसे अपने साथ ले जाएँ और जहाँ-जहाँ भी जाएँ, इसे भी पवित्र जल में स्नान करा लायें |”
ग्रामीणों ने उनके गुढ़ार्थ पर गौर किये बिना ही वह कड़वा घिया ले लिया | अपने साथ उसे भी विभिन्न तीर्थों में स्नान काराते और मंदिरों में दर्शन काराते हुए वे अपने गाँव वापस लौट आये और उन्होंने वह घिया संत तुकाराम को दे दिया | तुकारामजी ने सफल तीर्थयात्रा के उपलक्ष में सबको प्रीतिभोज पर आमंत्रित किया | तीर्थयात्रियों को विविध पकवान परोसे गये | तीर्थों में नहाए हुए घिया कि तरकारी विशेष रूप से बनवायी गई | जब उन लोगों ने उसे खाना शुरू किया तो सबने पाया कि वह तरकारी कड़वी कैसे हो सकती है ? यह तो उसी घिया से बनी है, तो तीर्थस्नान कर आया है | बेशक यह तीर्थटन से पहले कड़वा था, मगर आश्चर्य है कि तीर्थस्नान के पश्चात् भी उसमें कड़वाहट विद्यमान है |”
यह सुन उन तीर्थयात्रियों को बोध हुआ कि तीर्थाटन कि अपेक्षा एक स्थान पर बैठकर प्रभु कि श्रद्धापूर्वक वंदना करना ही श्रेयस्कर है |